Wildebeest analysis examples for:   hin-hin2017   ग    February 25, 2023 at 00:21    Script wb_pprint_html.py   by Ulf Hermjakob

2  GEN 1:2  पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी, और हरे जल के ऊपर अंधियारा था; तथा परमेश्‍वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डराता था। (2 कुरि. 4:6)
3  GEN 1:3  तब परमेश्‍वर ने कहा, “उजियाला हो*,” तो उजियाला हो या।
4  GEN 1:4  और परमेश्‍वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है*; और परमेश्‍वर ने उजियाले को अंधियारे से अल किया।
5  GEN 1:5  और परमेश्‍वर ने उजियाले को दिन और अंधियारे को रात कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहला दिन हो या।
6  GEN 1:6  फिर परमेश्‍वर ने कहा*, “जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भा हो जाए।”
7  GEN 1:7  तब परमेश्‍वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अल-अल किया; और वैसा ही हो या।
8  GEN 1:8  और परमेश्‍वर ने उस अन्तर को आकाश कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन हो या।
9  GEN 1:9  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे,” और वैसा ही हो या। (2 पत. 3:5)
11  GEN 1:11  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पृथ्वी से हरी घास, तथा बीजवाले छोटे-छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्हीं में एक-एक की जाति के अनुसार होते हैं पृथ्वी परें,” और वैसा ही हो या। (1 कुरि. 15:38)
12  GEN 1:12  इस प्रकार पृथ्वी से हरी घास, और छोटे-छोटे पेड़ जिनमें अपनी-अपनी जाति के अनुसार बीज होता है, और फलदाई वृक्ष जिनके बीज एक-एक की जाति के अनुसार उन्हीं में होते हैंें; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
13  GEN 1:13  तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार तीसरा दिन हो या।
14  GEN 1:14  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “दिन को रात से अल करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियों हों; और वे चिन्हों, और नियत समयों, और दिनों, और वर्षों के कारण हों;
15  GEN 1:15  और वे ज्योतियाँ आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें,” और वैसा ही हो या।
16  GEN 1:16  तब परमेश्‍वर ने दो बड़ी ज्योतियाँ बनाईं; उनमें से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया; और ताराको भी बनाया।
18  GEN 1:18  तथा दिन और रात पर प्रभुता करें और उजियाले को अंधियारे से अल करें; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
19  GEN 1:19  तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार चौथा दिन हो या।
21  GEN 1:21  इसलिए परमेश्‍वर ने जाति-जाति के बड़े-बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते-फिरते हैं जिनसे जल बहुत ही भर या और एक-एक जाति के उड़नेवाले पक्षियों की भी सृष्टि की; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
23  GEN 1:23  तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पाँचवाँ दिन हो या।
24  GEN 1:24  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पृथ्वी से एक-एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात् घरेलू पशु, और रेंनेवाले जन्तु, और पृथ्वी के वन पशु, जाति-जाति के अनुसार उत्‍पन्‍न हों,” और वैसा ही हो या।
25  GEN 1:25  इस प्रकार परमेश्‍वर ने पृथ्वी के जाति-जाति के वन-पशुओं को, और जाति-जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति-जाति के भूमि पर सब रेंनेवाले जन्तुओं को बनाया; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
26  GEN 1:26  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “हम मनुष्य* को अपने स्वरूप के अनुसार* अपनी समानता में बनाएँ; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंनेवाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंते हैं, अधिकार रखें।” (याकू. 3:9)
28  GEN 1:28  और परमेश्‍वर ने उनको आशीष दी; और उनसे कहा, “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुंद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।”
30  GEN 1:30  और जितने पृथ्वी के पशु, और आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर रेंनेवाले जन्तु हैं, जिनमें जीवन का प्राण हैं, उन सबके खाने के लिये मैंने सब हरे-हरे छोटे पेड़ दिए हैं,” और वैसा ही हो या।
31  GEN 1:31  तब परमेश्‍वर ने जो कुछ बनाया था, सबको देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवाँ दिन हो या। (1 तीमु. 4:4)
32  GEN 2:1  इस तरह आकाश और पृथ्वी और उनकी सारी सेना का बनाना समाप्त हो या।
36  GEN 2:5  तब मैदान का कोई पौधा भूमि पर न था, और न मैदान का कोई छोटा पेड़था, क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर ने पृथ्वी पर जल नहीं बरसाया था, और भूमि पर खेती करने के लिये मनुष्य भी नहीं था।
38  GEN 2:7  तब यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा, और उसके नथनों में जीवन का श्‍वास फूँक दिया; और आदम जीवित प्राणी बन या। (1 कुरि. 15:45)
39  GEN 2:8  और यहोवा परमेश्‍वर ने पूर्व की ओर, अदन में एक वाटिकााई; और वहाँ आदम को जिसे उसने रचा था, रख दिया।
40  GEN 2:9  और यहोवा परमेश्‍वर ने भूमि से सब भाँति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं,ाए, और वाटिका के बीच में जीवन के वृक्ष को और भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष को भीाया। (प्रका. 2:7, प्रका. 22:14)
41  GEN 2:10  उस वाटिका को सींचने के लिये एक महानदी अदन से निकली और वहाँ सेबहकर चार नदियों में बँट ई। (प्रका. 22:2)
44  GEN 2:13  और दूसरी नदी का नाम ीहोन है; यह वही है जो कूश के सारे देश को घेरे हुए है।
48  GEN 2:17  पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएउसी दिन अवश्य मर जाएा।”
49  GEN 2:18  फिर यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं*; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊँजो उसके लिये उपयुक्‍त होा।” (1 कुरि. 11:9)
50  GEN 2:19  और यहोवा परमेश्‍वर भूमि में से सब जाति के जंली पशुओं, और आकाश के सब भाँति के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या-क्या नाम रखता है; और जिस-जिस जीवित प्राणी का जो-जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो या।
51  GEN 2:20  अतः आदम ने सब जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पक्षियों, और सब जाति के जंली पशुओं के नाम रखे; परन्तु आदम के लिये कोई ऐसा सहायक न मिला जो उससे मेल खा सके।
52  GEN 2:21  तब यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को हरी नींद में डाल दिया, और जब वह सो या तब उसने उसकी एक पसली निकालकर उसकीमाँस भर दिया। (1 कुरि. 11:8)
54  GEN 2:23  तब आदम ने कहा, “अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे माँस में का माँस है; इसलिए इसका नाम नारी होा, क्योंकि यह नर में से निकाली है।”
55  GEN 2:24  इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्‍नी से मिला रहेऔर वे एक ही तन बने रहेंे। (मत्ती 19:5, मर. 10:7,8, इफि. 5:31)
56  GEN 2:25  आदम और उसकी पत्‍नी दोनों नंथे, पर वे लज्‍जित न थे।
57  GEN 3:1  यहोवा परमेश्‍वर ने जितने जंली पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त था, और उसने स्त्री से कहा, “क्या सच है, कि परमेश्‍वर ने कहा, 'तुम इस वाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना'?” (प्रका. 12:9, प्रका. 20:2)
59  GEN 3:3  पर जो वृक्ष वाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्‍वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न ही उसको छूना, नहीं तो मर जाओे।”
60  GEN 3:4  तब सर्प ने स्त्री से कहा, “तुम निश्चय न मरो
61  GEN 3:5  वरन् परमेश्‍वर आप जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओउसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्‍वर के तुल्य हो जाओे।”
62  GEN 3:6  अतः जब स्त्री ने देखा* कि उस वृक्ष का फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिये चाहने यो्य भी है, तब उसने उसमें से तोड़कर खाया; और अपने पति को भी दिया, जो उसके साथ था और उसने भी खाया। (1 तीमु. 2:14)
63  GEN 3:7  तब उन दोनों की आँखें खुल ईं, और उनको मालूम हुआ कि वे नंहैं; इसलिए उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़-जोड़कर लंोट बना लिये।
64  GEN 3:8  तब यहोवा परमेश्‍वर, जो दिन के ठंडे समय वाटिका में फिरता था, उसका शब्द उनको सुनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्‍नी वाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्‍वर से छिप ए।
66  GEN 3:10  उसने कहा, “मैं तेरा शब्द वाटिका में सुनकर डर या, क्योंकि मैं नंथा;* इसलिए छिप या।”
67  GEN 3:11  यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, “किसने तुझे बताया कि तू नंहै? जिस वृक्ष का फल खाने को मैंने तुझे मना किया था, क्या तूने उसका फल खाया है?”
68  GEN 3:12  आदम ने कहा, “जिस स्त्री को तूने मेरे सं रहने को दिया है उसी ने उस वृक्ष का फल मुझे दिया, और मैंने खाया।”
70  GEN 3:14  तब यहोवा परमेश्‍वर ने सर्प से कहा, “तूने जो यह किया है इसलिए तू सब घरेलू पशुओं, और सब जंली पशुओं से अधिक श्रापित है; तू पेट के बल चला करेा, और जीवन भर मिट्टी चाटता रहेा;
71  GEN 3:15  और मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्‍पन्‍न करूँा, वह तेरे सिर को कुचल डालेा, और तू उसकी एड़ी को डसेा।”
72  GEN 3:16  फिर स्त्री से उसने कहा, “मैं तेरी पीड़ा और तेरे र्भवती होने के दुःख को बहुत बढ़ाऊँा; तू पीड़ित होकर बच्चे उत्‍पन्‍न करेी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होी, और वह तुझ पर प्रभुता करेा।” (1 कुरि. 11:3, इफि. 5:22, कुलु. 3:18)
73  GEN 3:17  और आदम से उसने कहा, “तूने जो अपनी पत्‍नी की बात सुनी, और जिस वृक्ष के फल के विषय मैंने तुझे आज्ञा दी थी कि तू उसे न खाना, उसको तूने खाया है, इसलिए भूमि तेरे कारण श्रापित है। तू उसकी उपज जीवन भर दुःख के साथ खाया करेा; (इब्रा. 6:8)
74  GEN 3:18  और वह तेरे लिये काँटे और ऊँटकटारेाएी, और तू खेत की उपज खाएा;
75  GEN 3:19  और अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएा; क्योंकि तू उसी में से निकाला या है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएा।”
78  GEN 3:22  फिर यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, “मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो या है: इसलिए अब ऐसा न हो, कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ कर खा ले और सदा जीवित रहे।” (प्रका. 2:7, प्रका. 22:2,14, 19, उत्प. 3:24, प्रका. 2:7)
79  GEN 3:23  इसलिए यहोवा परमेश्‍वर ने उसको अदन की वाटिका में से निकाल दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिसमें से वह बनाया या था।
80  GEN 3:24  इसलिए आदम को उसने निकाल दिया* और जीवन के वृक्ष के मार् का पहरा देने के लिये अदन की वाटिका के पूर्व की ओर करूबों को, और चारों ओर घूमनेवाली्निमय तलवार को भी नियुक्त कर दिया।
81  GEN 4:1  जब आदम अपनी पत्‍नी हव्वा के पास या तब उसने र्भवती होकर कैन को जन्म दिया और कहा, “मैंने यहोवा की सहायता से एक पुत्र को जन्म दिया है।”
82  GEN 4:2  फिर वह उसके भाई हाबिल को भी जन्मी, हाबिल तो भेड़-बकरियों का चरवाहा बन या, परन्तु कैन भूमि की खेती करनेवाला किसान बना।
84  GEN 4:4  और हाबिल भी अपनी भेड़-बकरियों के कई एक पहलौठे बच्चे भेंट चढ़ाने ले आया और उनकी चर्बी भेंट चढ़ाई;* तब यहोवा ने हाबिल और उसकी भेंट को तो ्रहण किया, (इब्रा. 11:4)
85  GEN 4:5  परन्तु कैन और उसकी भेंट को उसने ्रहण न किया। तब कैन अति क्रोधित हुआ, और उसके मुँह पर उदासी छा ई।
86  GEN 4:6  तब यहोवा ने कैन से कहा, “तू क्यों क्रोधित हुआ? और तेरे मुँह पर उदासी क्यों छा है?
87  GEN 4:7  यदि तू भला करे, तो क्या तेरी भेंट ्रहण न की जाएी? और यदि तू भला न करे, तो पाप द्वार पर छिपा रहता है, और उसकी लालसा तेरी ओर होी, और तुझे उस पर प्रभुता करनी है।”
92  GEN 4:12  चाहे तू भूमि पर खेती करे, तो भी उसकी पूरी उपज फिर तुझे न मिलेी, और तू पृथ्वी पर भटकने वाला औरोड़ा होा।”