Wildebeest analysis examples for:   hin-hin2017   ै    February 25, 2023 at 00:21    Script wb_pprint_html.py   by Ulf Hermjakob

4  GEN 1:4  और परमेश्‍वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा*; और परमेश्‍वर ने उजियाले को अंधियारे से अलग किया।
7  GEN 1:7  तब परमेश्‍वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अलग-अलग किया; औरसा ही हो गया।
9  GEN 1:9  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे,” औरसा ही हो गया। (2 पत. 3:5)
10  GEN 1:10  और परमेश्‍वर ने सूखी भूमि को पृथ्वी कहा, तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको उसने समुद्र कहा; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा
11  GEN 1:11  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पृथ्वी से हरी घास, तथा बीजवाले छोटे-छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्हीं में एक-एक की जाति के अनुसार होतेपृथ्वी पर उगें,” औरसा ही हो गया। (1 कुरि. 15:38)
12  GEN 1:12  इस प्रकार पृथ्वी से हरी घास, और छोटे-छोटे पेड़ जिनमें अपनी-अपनी जाति के अनुसार बीज होता, और फलदाई वृक्ष जिनके बीज एक-एक की जाति के अनुसार उन्हीं में होतेउगें; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा
15  GEN 1:15  और वे ज्योतियाँ आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें,” औरसा ही हो गया।
18  GEN 1:18  तथा दिन और रात पर प्रभुता करें और उजियाले को अंधियारे से अलग करें; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा
21  GEN 1:21  इसलिए परमेश्‍वर ने जाति-जाति के बड़े-बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते-फिरतेजिनसे जल बहुत ही भर गया और एक-एक जाति के उड़नेवाले पक्षियों की भी सृष्टि की; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा
24  GEN 1:24  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पृथ्वी से एक-एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात् घरेलू पशु, और रेंगनेवाले जन्तु, और पृथ्वी के वन पशु, जाति-जाति के अनुसार उत्‍पन्‍न हों,” औरसा ही हो गया।
25  GEN 1:25  इस प्रकार परमेश्‍वर ने पृथ्वी के जाति-जाति के वन-पशुओं को, और जाति-जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति-जाति के भूमि पर सब रेंगनेवाले जन्तुओं को बनाया; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा
26  GEN 1:26  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “हम मनुष्य* को अपने स्वरूप के अनुसार* अपनी समानता में बनाएँ; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगनेवाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगतें, अधिकार रखें।” (याकू. 3:9)
29  GEN 1:29  फिर परमेश्‍वर ने उनसे कहा, “सुनो, जितने बीजवाले छोटे-छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपरऔर जितने वृक्षों में बीजवाले फल होतें, वे सबंने तुमको दिएं; वे तुम्हारे भोजन के लियें; (रोम. 14:2)
30  GEN 1:30  और जितने पृथ्वी के पशु, और आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले जन्तुं, जिनमें जीवन का प्राणं, उन सबके खाने के लियेंने सब हरे-हरे छोटे पेड़ दिएं,” औरसा ही हो गया।
31  GEN 1:31  तब परमेश्‍वर ने जो कुछ बनाया था, सबको देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छातथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवाँ दिन हो गया। (1 तीमु. 4:4)
35  GEN 2:4  आकाश और पृथ्वी की उत्पत्ति का वृत्तान्त यह कि जब वे उत्‍पन्‍न हुए अर्थात् जिस दिन यहोवा परमेश्‍वर ने पृथ्वी और आकाश को बनाया।
36  GEN 2:5  तबदान का कोई पौधा भूमि पर न था, और नदान का कोई छोटा पेड़ उगा था, क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर ने पृथ्वी पर जल नहीं बरसाया था, और भूमि पर खेती करने के लिये मनुष्य भी नहीं था।
40  GEN 2:9  और यहोवा परमेश्‍वर ने भूमि से सब भाँति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छें, उगाए, और वाटिका के बीच में जीवन के वृक्ष को और भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष को भी लगाया। (प्रका. 2:7, प्रका. 22:14)
42  GEN 2:11  पहली नदी का नाम पीशोन, यह वही जो हवीला नाम के सारे देश को जहाँ सोना मिलता घेरे हुए
43  GEN 2:12  उस देश का सोना उत्तम होता; वहाँ मोती और सुलमानी पत्थर भी मिलतें।
44  GEN 2:13  और दूसरी नदी का नाम गीहोन; यह वही जो कूश के सारे देश को घेरे हुए
45  GEN 2:14  और तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल; यह वही जो अश्शूर के पूर्व की ओर बहतीऔर चौथी नदी का नाम फरात
47  GEN 2:16  और यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को यह आज्ञा दी, “तू वाटिका के किसी भी वृक्षों का फल खा सकता;
48  GEN 2:17  पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।”
49  GEN 2:18  फिर यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं*;उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उसके लिये उपयुक्‍त होगा।” (1 कुरि. 11:9)
50  GEN 2:19  और यहोवा परमेश्‍वर भूमि में से सब जाति के जंगली पशुओं, और आकाश के सब भाँति के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या-क्या नाम रखता; और जिस-जिस जीवित प्राणी का जो-जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया।
54  GEN 2:23  तब आदम ने कहा, “अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे माँस में का माँस; इसलिए इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई।”
57  GEN 3:1  यहोवा परमेश्‍वर ने जितने जंगली पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त था, और उसने स्त्री से कहा, “क्या सच, कि परमेश्‍वर ने कहा, 'तुम इस वाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना'?” (प्रका. 12:9, प्रका. 20:2)
58  GEN 3:2  स्त्री ने सर्प से कहा, “इस वाटिका के वृक्षों के फल हम खा सकतें;
59  GEN 3:3  पर जो वृक्ष वाटिका के बीच में, उसके फल के विषय में परमेश्‍वर ने कहा कि न तो तुम उसको खाना और न ही उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे।”
61  GEN 3:5  वरन् परमेश्‍वर आप जानता कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्‍वर के तुल्य हो जाओगे।”
62  GEN 3:6  अतः जब स्त्री ने देखा* कि उस वृक्ष का फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिये चाहने योग्य भी, तब उसने उसमें से तोड़कर खाया; और अपने पति को भी दिया, जो उसके साथ था और उसने भी खाया। (1 तीमु. 2:14)
63  GEN 3:7  तब उन दोनों की आँखें खुल गईं, और उनको मालूम हुआ कि वे नंगें; इसलिए उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़-जोड़कर लंगोट बना लिये।
65  GEN 3:9  तब यहोवा परमेश्‍वर ने पुकारकर आदम से पूछा, “तू कहाँ?”
66  GEN 3:10  उसने कहा, “मतेरा शब्द वाटिका में सुनकर डर गया, क्योंकिनंगा था;* इसलिए छिप गया।”
67  GEN 3:11  यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, “किसने तुझे बताया कि तू नंगा? जिस वृक्ष का फल खाने कोंने तुझे मना किया था, क्या तूने उसका फल खाया?”
68  GEN 3:12  आदम ने कहा, “जिस स्त्री को तूने मेरे संग रहने को दिया उसी ने उस वृक्ष का फल मुझे दिया, औरंने खाया।”
69  GEN 3:13  तब यहोवा परमेश्‍वर ने स्त्री से कहा, “तूने यह क्या किया?” स्त्री ने कहा, “सर्प ने मुझे बहका दिया, तबंने खाया।” (रोम. 7:11, 2 कुरि. 11:3, 1 तीमु. 2:14)
70  GEN 3:14  तब यहोवा परमेश्‍वर ने सर्प से कहा, “तूने जो यह किया इसलिए तू सब घरेलू पशुओं, और सब जंगली पशुओं से अधिक श्रापित; तू पेट के बल चला करेगा, और जीवन भर मिट्टी चाटता रहेगा;
71  GEN 3:15  औरतेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच मेंउत्‍पन्‍न करूँगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।”
72  GEN 3:16  फिर स्त्री से उसने कहा, “मतेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दुःख को बहुत बढ़ाऊँगा; तू पीड़ित होकर बच्चे उत्‍पन्‍न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।” (1 कुरि. 11:3, इफि. 5:22, कुलु. 3:18)
73  GEN 3:17  और आदम से उसने कहा, “तूने जो अपनी पत्‍नी की बात सुनी, और जिस वृक्ष के फल के विषयंने तुझे आज्ञा दी थी कि तू उसे न खाना, उसको तूने खाया, इसलिए भूमि तेरे कारण श्रापिततू उसकी उपज जीवन भर दुःख के साथ खाया करेगा; (इब्रा. 6:8)
75  GEN 3:19  और अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया, तू मिट्टी तो और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।”
76  GEN 3:20  आदम ने अपनी पत्‍नी का नाम हव्वा रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवितउन सब की मूलमाता वही हुई।
78  GEN 3:22  फिर यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, “मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया: इसलिए अब ऐसा न हो, कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ कर खा ले और सदा जीवित रहे।” (प्रका. 2:7, प्रका. 22:2,14, 19, उत्प. 3:24, प्रका. 2:7)
81  GEN 4:1  जब आदम अपनी पत्‍नी हव्वा के पास गया तब उसने गर्भवती होकरको जन्म दिया और कहा, “मंने यहोवा की सहायता से एक पुत्र को जन्म दिया।”
82  GEN 4:2  फिर वह उसके भाई हाबिल को भी जन्मी, हाबिल तो भेड़-बकरियों का चरवाहा बन गया, परन्तुभूमि की खेती करनेवाला किसान बना।
83  GEN 4:3  कुछ दिनों के पश्चात्यहोवा के पास भूमि की उपज में से कुछ भेंट ले आया। (यहू. 1:11)
85  GEN 4:5  परन्तुऔर उसकी भेंट को उसने ग्रहण न किया। तबअति क्रोधित हुआ, और उसके मुँह पर उदासी छा गई।
86  GEN 4:6  तब यहोवा नेसे कहा, “तू क्यों क्रोधित हुआ? और तेरे मुँह पर उदासी क्यों छा गई?
87  GEN 4:7  यदि तू भला करे, तो क्या तेरी भेंट ग्रहण न की जाएगी? और यदि तू भला न करे, तो पाप द्वार पर छिपा रहता, और उसकी लालसा तेरी ओर होगी, और तुझे उस पर प्रभुता करनी।”
88  GEN 4:8  तबने अपने भाई हाबिल से कुछ कहा; और जब वेदान में थे, तबने अपने भाई हाबिल पर चढ़कर उसकी हत्‍या कर दी।
89  GEN 4:9  तब यहोवा नेसे पूछा, “तेरा भाई हाबिल कहाँ?” उसने कहा, “मालूम नहीं; क्याअपने भाई का रखवाला हूँ?”
90  GEN 4:10  उसने कहा, “तूने क्या किया? तेरे भाई का लहू भूमि में से मेरी ओर चिल्लाकर मेरी दुहाई दे रहा! (इब्रा. 12:24)
91  GEN 4:11  इसलिए अब भूमि जिसने तेरे भाई का लहू तेरे हाथ से पीने के लिये अपना मुँह खोला, उसकी ओर से तू श्रापित*
93  GEN 4:13  तबने यहोवा से कहा, “मेरा दण्ड असहनीय
94  GEN 4:14  देख, तूने आज के दिन मुझे भूमि पर से निकाला औरतेरी दृष्टि की आड़ में रहूँगा और पृथ्वी पर भटकने वाला और भगोड़ा रहूँगा; और जो कोई मुझे पाएगा, मेरी हत्‍या करेगा।”
95  GEN 4:15  इस कारण यहोवा ने उससे कहा, “जो कोईकी हत्‍या करेगा उससे सात गुणा पलटा लिया जाएगा।” और यहोवा नेके लिये एक चिन्ह ठहराया ऐसा न हो कि कोई उसे पाकर मार डाले।
96  GEN 4:16  तबयहोवा के सम्मुख से निकल गया और नोद नामक देश में, जो अदन के पूर्व की ओर, रहने लगा।
97  GEN 4:17  जबअपनी पत्‍नी के पास गया तब वह गर्भवती हुई और हनोक को जन्म दिया; फिरने एक नगर बसाया और उस नगर का नाम अपने पुत्र के नाम पर हनोक रखा।
99  GEN 4:19  लेमेक ने दो स्त्रियाँ ब्याह लीं: जिनमें से एक का नाम आदा और दूसरी का सिल्ला
102  GEN 4:22  और सिल्ला ने भी तूबल-कनामक एक पुत्र को जन्म दिया: वह पीतल और लोहे के सब धारवाले हथियारों का गढ़नेवाला हुआ। और तूबल-ककी बहन नामाह थी।
103  GEN 4:23  लेमेक ने अपनी पत्नियों से कहा, “हे आदा और हे सिल्ला मेरी सुनो; हे लेमेक की पत्नियों, मेरी बात पर कान लगाओ:ंने एक पुरुष को जो मुझे चोट लगाता था, अर्थात् एक जवान को जो मुझे घायल करता था, घात किया
104  GEN 4:24  जबका पलटा सातगुणा लिया जाएगा। तो लेमेक का सतहत्तर गुणा लिया जाएगा।”
105  GEN 4:25  और आदम अपनी पत्‍नी के पास फिर गया; और उसने एक पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम यह कहकर शेत रखा कि “परमेश्‍वर ने मेरे लिये हाबिल के बदले, जिसकोने मारा था, एक और वंश प्रदान किया।” (उत्प. 5:3-4)
107  GEN 5:1  आदम की वंशावली यहजब परमेश्‍वर ने मनुष्य की सृष्टि की तब अपने ही स्वरूप में उसको बनाया। (मत्ती 1:1, 1 कुरि. 11:7)
121  GEN 5:15  जब महललेलंसठ वर्ष का हुआ, तब उसने येरेद को जन्म दिया।
127  GEN 5:21  जब हनोकंसठ वर्ष का हुआ, तब उसने मतूशेलह को जन्म दिया।
129  GEN 5:23  इस प्रकार हनोक की कुल आयु तीन सौंसठ वर्ष की हुई।
135  GEN 5:29  उसने यह कहकर उसका नाम नूह रखा, कि “यहोवा ने जो पृथ्वी को श्राप दिया, उसके विषय यह लड़का हमारे काम में, और उस कठिन परिश्रम में जो हम करतें, हमें शान्ति देगा।”
140  GEN 6:2  तब परमेश्‍वर के पुत्रों ने मनुष्य की पुत्रियों को देखा, कि वे सुन्दरं; और उन्होंने जिस-जिस को चाहा उनसे ब्याह कर लिया।
141  GEN 6:3  तब यहोवा ने कहा, “मेरा आत्मा मनुष्‍य में सदा के लिए निवास न करेगा, क्योंकि मनुष्य भी शरीर ही; उसकी आयु एक सौ बीस वर्ष की होगी।”
142  GEN 6:4  उन दिनों में पृथ्वी पर दानव रहते थे; और इसके पश्चात् जब परमेश्‍वर के पुत्र मनुष्य की पुत्रियों के पास गए तब उनके द्वारा जो सन्तान उत्‍पन्‍न हुए, वे पुत्र शूरवीर होते थे, जिनकी कीर्ति प्राचीनकाल से प्रचलित
143  GEN 6:5  यहोवा ने देखा कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्‍पन्‍न होता वह निरन्तर बुरा ही होता(भज. 53:2)
145  GEN 6:7  तब यहोवा ने कहा, “ममनुष्य को जिसकींने सृष्टि की पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूँगा;* क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगनेवाले जन्तु, क्या आकाश के पक्षी, सब को मिटा दूँगा, क्योंकिउनके बनाने से पछताता हूँ।”