7851 | 1SA 24:10 | और दाऊद ने शाऊल से कहा, “जो मनुष्य कहते हैं, कि दाऊद तेरी हानि चाहता है उनकी तू क्यों सुनता है*? |
12417 | NEH 6:11 | परन्तु मैंने कहा, “क्या मुझ जैसा मनुष्य भागे? और मुझ जैसा कौन है जो अपना प्राण बचाने को मन्दिर में घुसे*? मैं नहीं जाने का।” |
13057 | JOB 9:2 | “मैं निश्चय जानता हूँ, कि बात ऐसी ही है; परन्तु मनुष्य परमेश्वर की दृष्टि में कैसे धर्मी ठहर सकता है*? |
13067 | JOB 9:12 | देखो, जब वह छीनने लगे, तब उसको कौन रोकेगा*? कौन उससे कह सकता है कि तू यह क्या करता है? |
13303 | JOB 19:2 | “तुम कब तक मेरे प्राण को दुःख देते रहोगे; और बातों से मुझे चूर-चूर करोगे*? |
13396 | JOB 22:3 | क्या तेरे धर्मी होने से सर्वशक्तिमान सुख पा सकता है*? तेरी चाल की खराई से क्या उसे कुछ लाभ हो सकता है? |
13595 | JOB 31:3 | क्या वह कुटिल मनुष्यों के लिये विपत्ति और अनर्थ काम करनेवालों के लिये सत्यानाश का कारण नहीं है*? |
13730 | JOB 35:6 | यदि तूने पाप किया है तो परमेश्वर का क्या बिगड़ता है*? यदि तेरे अपराध बहुत ही बढ़ जाएँ तो भी तू उसका क्या कर लेगा? |
13906 | JOB 41:6 | उसके मुख के दोनों किवाड़ कौन खोल सकता है*? उसके दाँत चारों ओर से डरावने हैं। |
14053 | PSA 10:1 | हे यहोवा तू क्यों दूर खड़ा रहता है? संकट के समय में क्यों छिपा रहता है*? |
14303 | PSA 27:1 | यहोवा मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; मैं किस से डरूँ*? यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ ठहरा है, मैं किस का भय खाऊँ? |
14622 | PSA 44:25 | तू क्यों अपना मुँह छिपा लेता है*? और हमारा दुःख और सताया जाना भूल जाता है? |
14804 | PSA 56:9 | तू मेरे मारे-मारे फिरने का हिसाब रखता है; तू मेरे आँसुओं को अपनी कुप्पी में रख ले! क्या उनकी चर्चा तेरी पुस्तक में नहीं है*? |
15248 | PSA 79:5 | हे यहोवा, कब तक*? क्या तू सदा के लिए क्रोधित रहेगा? तुझ में आग की सी जलन कब तक भड़कती रहेगी? |
15261 | PSA 80:5 | हे सेनाओं के परमेश्वर यहोवा, तू कब तक अपनी प्रजा की प्रार्थना पर क्रोधित रहेगा*? |
15295 | PSA 82:2 | “तुम लोग कब तक टेढ़ा न्याय करते और दुष्टों का पक्ष लेते रहोगे*? (सेला) |
15505 | PSA 94:8 | तुम जो प्रजा में पशु सरीखे हो, विचार करो; और हे मूर्खों तुम कब बुद्धिमान बनोगे*? |
17048 | PRO 20:24 | मनुष्य का मार्ग यहोवा की ओर से ठहराया जाता है; मनुष्य अपना मार्ग कैसे समझ सकेगा*? |
17451 | ECC 3:22 | अतः मैंने यह देखा कि इससे अधिक कुछ अच्छा नहीं कि मनुष्य अपने कामों में आनन्दित रहे, क्योंकि उसका भाग यही है; कौन उसके पीछे होनेवाली बातों को देखने के लिये उसको लौटा लाएगा*? |
17865 | ISA 7:13 | तब उसने कहा, “हे दाऊद के घराने सुनो! क्या तुम मनुष्यों को थका देना छोटी बात समझकर अब मेरे परमेश्वर को भी थका दोगे*? |
18503 | ISA 40:13 | किसने यहोवा की आत्मा को मार्ग बताया या उसका सलाहकार होकर उसको ज्ञान सिखाया है*? (1 कुरि. 2:16) |
18782 | ISA 53:1 | जो समाचार हमें दिया गया, उसका किसने विश्वास किया? और यहोवा का भुजबल किस पर प्रगट हुआ*? (यूह. 12:38, रोमि 10:16) |
19322 | JER 12:4 | कब तक देश विलाप करता रहेगा, और सारे मैदान की घास सूखी रहेगी*? देश के निवासियों की बुराई के कारण पशु-पक्षी सब नाश हो गए हैं, क्योंकि उन लोगों ने कहा, “वह हमारे अन्त को न देखेगा।” |
20462 | LAM 3:39 | इसलिए जीवित मनुष्य क्यों कुड़कुड़ाए*? और पुरुष अपने पाप के दण्ड को क्यों बुरा माने? |
22472 | AMO 3:8 | सिंह गरजा; कौन न डरेगा*? परमेश्वर यहोवा बोला; कौन भविष्यद्वाणी न करेगा?” |
22517 | AMO 5:25 | “हे इस्राएल के घराने, तुम जंगल में चालीस वर्ष तक पशुबलि और अन्नबलि क्या मुझी को चढ़ाते रहे*? |
25514 | LUK 11:40 | हे निर्बुद्धियों, जिस ने बाहर का भाग बनाया, क्या उसने भीतर का भाग नहीं बनाया*? |
28166 | ROM 7:7 | तो हम क्या कहें? क्या व्यवस्था पाप है*? कदापि नहीं! वरन् बिना व्यवस्था के मैं पाप को नहीं पहचानता व्यवस्था यदि न कहती, “लालच मत कर” तो मैं लालच को न जानता। (रोम. 3:20) |
28183 | ROM 7:24 | मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा*? |
28534 | 1CO 5:12 | क्योंकि मुझे बाहरवालों का न्याय करने से क्या काम*? क्या तुम भीतरवालों का न्याय नहीं करते? |
28609 | 1CO 9:1 | क्या मैं स्वतंत्र नहीं*? क्या मैं प्रेरित नहीं? क्या मैंने यीशु को जो हमारा प्रभु है, नहीं देखा? क्या तुम प्रभु में मेरे बनाए हुए नहीं? |
30047 | HEB 2:3 | तो हम लोग ऐसे बड़े उद्धार से उपेक्षा करके कैसे बच सकते हैं*? जिसकी चर्चा पहले-पहल प्रभु के द्वारा हुई, और सुननेवालों के द्वारा हमें निश्चय हुआ। |
30385 | JAS 2:25 | वैसे ही राहाब वेश्या भी जब उसने दूतों को अपने घर में उतारा, और दूसरे मार्ग से विदा किया, तो क्या कर्मों से धार्मिक न ठहरी*? (इब्रा. 11:31) |