Wildebeest analysis examples for:   hin-hin2017   औ    February 11, 2023 at 18:44    Script wb_pprint_html.py   by Ulf Hermjakob

1  GEN 1:1  आदि में परमेश्‍वर ने आकाश पृथ्वी की सृष्टि की। (इब्रा. 1:10, इब्रा. 11:3)
2  GEN 1:2  पृथ्वी बेडौल सुनसान पड़ी थी, गहरे जल के ऊपर अंधियारा था; तथा परमेश्‍वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डराता था। (2 कुरि. 4:6)
4  GEN 1:4  परमेश्‍वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है*; परमेश्‍वर ने उजियाले को अंधियारे से अलग किया।
5  GEN 1:5  परमेश्‍वर ने उजियाले को दिन अंधियारे को रात कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहला दिन हो गया।
7  GEN 1:7  तब परमेश्‍वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल उसके ऊपर के जल को अलग-अलग किया; वैसा ही हो गया।
8  GEN 1:8  परमेश्‍वर ने उस अन्तर को आकाश कहा। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन हो गया।
9  GEN 1:9  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “आकाश के नीचे का जल एक स्थान में इकट्ठा हो जाए सूखी भूमि दिखाई दे,” वैसा ही हो गया। (2 पत. 3:5)
10  GEN 1:10  परमेश्‍वर ने सूखी भूमि को पृथ्वी कहा, तथा जो जल इकट्ठा हुआ उसको उसने समुद्र कहा; परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
11  GEN 1:11  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पृथ्वी से हरी घास, तथा बीजवाले छोटे-छोटे पेड़, फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्हीं में एक-एक की जाति के अनुसार होते हैं पृथ्वी पर उगें,” वैसा ही हो गया। (1 कुरि. 15:38)
12  GEN 1:12  इस प्रकार पृथ्वी से हरी घास, छोटे-छोटे पेड़ जिनमें अपनी-अपनी जाति के अनुसार बीज होता है, फलदाई वृक्ष जिनके बीज एक-एक की जाति के अनुसार उन्हीं में होते हैं उगें; परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
14  GEN 1:14  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “दिन को रात से अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियों हों; वे चिन्हों, नियत समयों, दिनों, वर्षों के कारण हों;
15  GEN 1:15  वे ज्योतियाँ आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें,” वैसा ही हो गया।
16  GEN 1:16  तब परमेश्‍वर ने दो बड़ी ज्योतियाँ बनाईं; उनमें से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया; तारागण को भी बनाया।
18  GEN 1:18  तथा दिन रात पर प्रभुता करें उजियाले को अंधियारे से अलग करें; परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
20  GEN 1:20  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “जल जीवित प्राणियों से बहुत ही भर जाए, पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें।”
21  GEN 1:21  इसलिए परमेश्‍वर ने जाति-जाति के बड़े-बड़े जल-जन्तुओं की, उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते-फिरते हैं जिनसे जल बहुत ही भर गया एक-एक जाति के उड़नेवाले पक्षियों की भी सृष्टि की; परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
22  GEN 1:22  परमेश्‍वर ने यह कहकर उनको आशीष दी*, “फूलो-फलो, समुद्र के जल में भर जाओ, पक्षी पृथ्वी पर बढ़ें।”
24  GEN 1:24  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पृथ्वी से एक-एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात् घरेलू पशु, रेंगनेवाले जन्तु, पृथ्वी के वन पशु, जाति-जाति के अनुसार उत्‍पन्‍न हों,” वैसा ही हो गया।
25  GEN 1:25  इस प्रकार परमेश्‍वर ने पृथ्वी के जाति-जाति के वन-पशुओं को, जाति-जाति के घरेलू पशुओं को, जाति-जाति के भूमि पर सब रेंगनेवाले जन्तुओं को बनाया; परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
26  GEN 1:26  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “हम मनुष्य* को अपने स्वरूप के अनुसार* अपनी समानता में बनाएँ; वे समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों, घरेलू पशुओं, सारी पृथ्वी पर, सब रेंगनेवाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें।” (याकू. 3:9)
27  GEN 1:27  तब परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्‍पन्‍न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्‍वर ने उसको उत्‍पन्‍न किया; नर नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की। (मत्ती 19:4, मर. 10:6, प्रेरि. 17:29, 1 कुरि. 11:7, कुलु. 3:10,1, तीमु. 2:13)
28  GEN 1:28  परमेश्‍वर ने उनको आशीष दी; उनसे कहा, “फूलो-फलो, पृथ्वी में भर जाओ, उसको अपने वश में कर लो; समुंद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।”
29  GEN 1:29  फिर परमेश्‍वर ने उनसे कहा, “सुनो, जितने बीजवाले छोटे-छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं जितने वृक्षों में बीजवाले फल होते हैं, वे सब मैंने तुमको दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिये हैं; (रोम. 14:2)
30  GEN 1:30  जितने पृथ्वी के पशु, आकाश के पक्षी, पृथ्वी पर रेंगनेवाले जन्तु हैं, जिनमें जीवन का प्राण हैं, उन सबके खाने के लिये मैंने सब हरे-हरे छोटे पेड़ दिए हैं,” वैसा ही हो गया।
32  GEN 2:1  इस तरह आकाश पृथ्वी उनकी सारी सेना का बनाना समाप्त हो गया।
33  GEN 2:2  परमेश्‍वर ने अपना काम जिसे वह करता था सातवें दिन समाप्त किया, उसने अपने किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्राम किया।* (इब्रा. 4:4)
34  GEN 2:3  परमेश्‍वर ने सातवें दिन को आशीष दी पवित्र ठहराया; क्योंकि उसमें उसने सृष्टि की रचना के अपने सारे काम से विश्राम लिया।
35  GEN 2:4  आकाश पृथ्वी की उत्पत्ति का वृत्तान्त यह है कि जब वे उत्‍पन्‍न हुए अर्थात् जिस दिन यहोवा परमेश्‍वर ने पृथ्वी आकाश को बनाया।
36  GEN 2:5  तब मैदान का कोई पौधा भूमि पर न था, न मैदान का कोई छोटा पेड़ उगा था, क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर ने पृथ्वी पर जल नहीं बरसाया था, भूमि पर खेती करने के लिये मनुष्य भी नहीं था।
38  GEN 2:7  तब यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा, उसके नथनों में जीवन का श्‍वास फूँक दिया; आदम जीवित प्राणी बन गया। (1 कुरि. 15:45)
39  GEN 2:8  यहोवा परमेश्‍वर ने पूर्व की ओर, अदन में एक वाटिका लगाई; वहाँ आदम को जिसे उसने रचा था, रख दिया।
40  GEN 2:9  यहोवा परमेश्‍वर ने भूमि से सब भाँति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर जिनके फल खाने में अच्छे हैं, उगाए, वाटिका के बीच में जीवन के वृक्ष को भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष को भी लगाया। (प्रका. 2:7, प्रका. 22:14)
41  GEN 2:10  उस वाटिका को सींचने के लिये एक महानदी अदन से निकली वहाँ से आगे बहकर चार नदियों में बँट गई। (प्रका. 22:2)
43  GEN 2:12  उस देश का सोना उत्तम होता है; वहाँ मोती सुलैमानी पत्थर भी मिलते हैं।
44  GEN 2:13  दूसरी नदी का नाम गीहोन है; यह वही है जो कूश के सारे देश को घेरे हुए है।
45  GEN 2:14  तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल है; यह वही है जो अश्शूर के पूर्व की ओर बहती है। चौथी नदी का नाम फरात है।
46  GEN 2:15  तब यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को लेकर* अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उसमें काम करे उसकी रखवाली करे।
47  GEN 2:16  यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को यह आज्ञा दी, “तू वाटिका के किसी भी वृक्षों का फल खा सकता है;
50  GEN 2:19  यहोवा परमेश्‍वर भूमि में से सब जाति के जंगली पशुओं, आकाश के सब भाँति के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या-क्या नाम रखता है; जिस-जिस जीवित प्राणी का जो-जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया।
51  GEN 2:20  अतः आदम ने सब जाति के घरेलू पशुओं, आकाश के पक्षियों, सब जाति के जंगली पशुओं के नाम रखे; परन्तु आदम के लिये कोई ऐसा सहायक न मिला जो उससे मेल खा सके।
52  GEN 2:21  तब यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को गहरी नींद में डाल दिया, जब वह सो गया तब उसने उसकी एक पसली निकालकर उसकी जगह माँस भर दिया। (1 कुरि. 11:8)
53  GEN 2:22  यहोवा परमेश्‍वर ने उस पसली को जो उसने आदम में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; उसको आदम के पास ले आया। (1 तीमु. 2:13)
54  GEN 2:23  तब आदम ने कहा, “अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी मेरे माँस में का माँस है; इसलिए इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है।”
55  GEN 2:24  इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्‍नी से मिला रहेगा वे एक ही तन बने रहेंगे। (मत्ती 19:5, मर. 10:7,8, इफि. 5:31)
56  GEN 2:25  आदम उसकी पत्‍नी दोनों नंगे थे, पर वे लज्‍जित न थे।
57  GEN 3:1  यहोवा परमेश्‍वर ने जितने जंगली पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त था, उसने स्त्री से कहा, “क्या सच है, कि परमेश्‍वर ने कहा, 'तुम इस वाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना'?” (प्रका. 12:9, प्रका. 20:2)
59  GEN 3:3  पर जो वृक्ष वाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्‍वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना न ही उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे।”
61  GEN 3:5  वरन् परमेश्‍वर आप जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्‍वर के तुल्य हो जाओगे।”
62  GEN 3:6  अतः जब स्त्री ने देखा* कि उस वृक्ष का फल खाने में अच्छा, देखने में मनभाऊ, बुद्धि देने के लिये चाहने योग्य भी है, तब उसने उसमें से तोड़कर खाया; अपने पति को भी दिया, जो उसके साथ था उसने भी खाया। (1 तीमु. 2:14)
63  GEN 3:7  तब उन दोनों की आँखें खुल गईं, उनको मालूम हुआ कि वे नंगे हैं; इसलिए उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़-जोड़कर लंगोट बना लिये।
64  GEN 3:8  तब यहोवा परमेश्‍वर, जो दिन के ठंडे समय वाटिका में फिरता था, उसका शब्द उनको सुनाई दिया। तब आदम उसकी पत्‍नी वाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्‍वर से छिप गए।
68  GEN 3:12  आदम ने कहा, “जिस स्त्री को तूने मेरे संग रहने को दिया है उसी ने उस वृक्ष का फल मुझे दिया, मैंने खाया।”
70  GEN 3:14  तब यहोवा परमेश्‍वर ने सर्प से कहा, “तूने जो यह किया है इसलिए तू सब घरेलू पशुओं, सब जंगली पशुओं से अधिक श्रापित है; तू पेट के बल चला करेगा, जीवन भर मिट्टी चाटता रहेगा;
71  GEN 3:15  मैं तेरे इस स्त्री के बीच में, तेरे वंश इसके वंश के बीच में बैर उत्‍पन्‍न करूँगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, तू उसकी एड़ी को डसेगा।”
72  GEN 3:16  फिर स्त्री से उसने कहा, “मैं तेरी पीड़ा तेरे गर्भवती होने के दुःख को बहुत बढ़ाऊँगा; तू पीड़ित होकर बच्चे उत्‍पन्‍न करेगी; तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, वह तुझ पर प्रभुता करेगा।” (1 कुरि. 11:3, इफि. 5:22, कुलु. 3:18)
73  GEN 3:17  आदम से उसने कहा, “तूने जो अपनी पत्‍नी की बात सुनी, जिस वृक्ष के फल के विषय मैंने तुझे आज्ञा दी थी कि तू उसे न खाना, उसको तूने खाया है, इसलिए भूमि तेरे कारण श्रापित है। तू उसकी उपज जीवन भर दुःख के साथ खाया करेगा; (इब्रा. 6:8)
74  GEN 3:18  वह तेरे लिये काँटे ऊँटकटारे उगाएगी, तू खेत की उपज खाएगा;
75  GEN 3:19  अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।”
77  GEN 3:21  यहोवा परमेश्‍वर ने आदम उसकी पत्‍नी के लिये चमड़े के वस्‍त्र बनाकर उनको पहना दिए।
78  GEN 3:22  फिर यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, “मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है: इसलिए अब ऐसा न हो, कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ कर खा ले सदा जीवित रहे।” (प्रका. 2:7, प्रका. 22:2,14, 19, उत्प. 3:24, प्रका. 2:7)
80  GEN 3:24  इसलिए आदम को उसने निकाल दिया* जीवन के वृक्ष के मार्ग का पहरा देने के लिये अदन की वाटिका के पूर्व की ओर करूबों को, चारों ओर घूमनेवाली अग्निमय तलवार को भी नियुक्त कर दिया।
81  GEN 4:1  जब आदम अपनी पत्‍नी हव्वा के पास गया तब उसने गर्भवती होकर कैन को जन्म दिया कहा, “मैंने यहोवा की सहायता से एक पुत्र को जन्म दिया है।”
84  GEN 4:4  हाबिल भी अपनी भेड़-बकरियों के कई एक पहलौठे बच्चे भेंट चढ़ाने ले आया उनकी चर्बी भेंट चढ़ाई;* तब यहोवा ने हाबिल उसकी भेंट को तो ग्रहण किया, (इब्रा. 11:4)
85  GEN 4:5  परन्तु कैन उसकी भेंट को उसने ग्रहण न किया। तब कैन अति क्रोधित हुआ, उसके मुँह पर उदासी छा गई।
86  GEN 4:6  तब यहोवा ने कैन से कहा, “तू क्यों क्रोधित हुआ? तेरे मुँह पर उदासी क्यों छा गई है?
87  GEN 4:7  यदि तू भला करे, तो क्या तेरी भेंट ग्रहण न की जाएगी? यदि तू भला न करे, तो पाप द्वार पर छिपा रहता है, उसकी लालसा तेरी ओर होगी, तुझे उस पर प्रभुता करनी है।”
88  GEN 4:8  तब कैन ने अपने भाई हाबिल से कुछ कहा; जब वे मैदान में थे, तब कैन ने अपने भाई हाबिल पर चढ़कर उसकी हत्‍या कर दी।
92  GEN 4:12  चाहे तू भूमि पर खेती करे, तो भी उसकी पूरी उपज फिर तुझे न मिलेगी, तू पृथ्वी पर भटकने वाला भगोड़ा होगा।”
94  GEN 4:14  देख, तूने आज के दिन मुझे भूमि पर से निकाला है मैं तेरी दृष्टि की आड़ में रहूँगा पृथ्वी पर भटकने वाला भगोड़ा रहूँगा; जो कोई मुझे पाएगा, मेरी हत्‍या करेगा।”
95  GEN 4:15  इस कारण यहोवा ने उससे कहा, “जो कोई कैन की हत्‍या करेगा उससे सात गुणा पलटा लिया जाएगा।” यहोवा ने कैन के लिये एक चिन्ह ठहराया ऐसा न हो कि कोई उसे पाकर मार डाले।
96  GEN 4:16  तब कैन यहोवा के सम्मुख से निकल गया नोद नामक देश में, जो अदन के पूर्व की ओर है, रहने लगा।
97  GEN 4:17  जब कैन अपनी पत्‍नी के पास गया तब वह गर्भवती हुई हनोक को जन्म दिया; फिर कैन ने एक नगर बसाया उस नगर का नाम अपने पुत्र के नाम पर हनोक रखा।
98  GEN 4:18  हनोक से ईराद उत्‍पन्‍न हुआ, ईराद से महूयाएल उत्‍पन्‍न हुआ महूयाएल से मतूशाएल, मतूशाएल से लेमेक उत्‍पन्‍न हुआ।
99  GEN 4:19  लेमेक ने दो स्त्रियाँ ब्याह लीं: जिनमें से एक का नाम आदा दूसरी का सिल्ला है।
100  GEN 4:20  आदा ने याबाल को जन्म दिया। वह उन लोगों का पिता था जो तम्बूओं में रहते थे पशुओं का पालन करके जीवन निर्वाह करते थे।
101  GEN 4:21  उसके भाई का नाम यूबाल था : वह उन लोगों का पिता था जो वीणा बाँसुरी बजाते थे।
102  GEN 4:22  सिल्ला ने भी तूबल-कैन नामक एक पुत्र को जन्म दिया: वह पीतल लोहे के सब धारवाले हथियारों का गढ़नेवाला हुआ। तूबल-कैन की बहन नामाह थी।
103  GEN 4:23  लेमेक ने अपनी पत्नियों से कहा, “हे आदा हे सिल्ला मेरी सुनो; हे लेमेक की पत्नियों, मेरी बात पर कान लगाओ: मैंने एक पुरुष को जो मुझे चोट लगाता था, अर्थात् एक जवान को जो मुझे घायल करता था, घात किया है।
105  GEN 4:25  आदम अपनी पत्‍नी के पास फिर गया; उसने एक पुत्र को जन्म दिया उसका नाम यह कहकर शेत रखा कि “परमेश्‍वर ने मेरे लिये हाबिल के बदले, जिसको कैन ने मारा था, एक वंश प्रदान किया।” (उत्प. 5:3-4)
106  GEN 4:26  शेत के भी एक पुत्र उत्‍पन्‍न हुआ उसने उसका नाम एनोश रखा। उसी समय से लोग यहोवा से प्रार्थना करने लगे।
108  GEN 5:2  उसने नर नारी करके मनुष्यों की सृष्टि की उन्हें आशीष दी, उनकी सृष्टि के दिन उनका नाम आदम रखा*। (मत्ती 19:4, मर. 10:6)
110  GEN 5:4  शेत के जन्म के पश्चात् आदम आठ सौ वर्ष जीवित रहा, उसके भी बेटे-बेटियाँ उत्‍पन्‍न हुईं।
113  GEN 5:7  एनोश के जन्म के पश्चात् शेत आठ सौ सात वर्ष जीवित रहा, उसके भी बेटे-बेटियाँ उत्‍पन्‍न हुईं।
116  GEN 5:10  केनान के जन्म के पश्चात् एनोश आठ सौ पन्द्रह वर्ष जीवित रहा, उसके भी बेटे-बेटियाँ उत्‍पन्‍न हुईं।
119  GEN 5:13  महललेल के जन्म के पश्चात् केनान आठ सौ चालीस वर्ष जीवित रहा, उसके भी बेटे-बेटियाँ उत्‍पन्‍न हुईं।
122  GEN 5:16  येरेद के जन्म के पश्चात् महललेल आठ सौ तीस वर्ष जीवित रहा, उसके भी बेटे-बेटियाँ उत्‍पन्‍न हुईं।
125  GEN 5:19  हनोक के जन्म के पश्चात् येरेद आठ सौ वर्ष जीवित रहा, उसके भी बेटे-बेटियाँ उत्‍पन्‍न हुईं।
128  GEN 5:22  मतूशेलह के जन्म के पश्चात् हनोक तीन सौ वर्ष तक परमेश्‍वर के साथ-साथ चलता रहा,* उसके भी बेटे-बेटियाँ उत्‍पन्‍न हुईं।
132  GEN 5:26  लेमेक के जन्म के पश्चात् मतूशेलह सात सौ बयासी वर्ष जीवित रहा, उसके भी बेटे-बेटियाँ उत्‍पन्‍न हुईं।
135  GEN 5:29  उसने यह कहकर उसका नाम नूह रखा, कि “यहोवा ने जो पृथ्वी को श्राप दिया है, उसके विषय यह लड़का हमारे काम में, उस कठिन परिश्रम में जो हम करते हैं, हमें शान्ति देगा।”
136  GEN 5:30  नूह के जन्म के पश्चात् लेमेक पाँच सौ पंचानबे वर्ष जीवित रहा, उसके भी बेटे-बेटियाँ उत्‍पन्‍न हुईं।
138  GEN 5:32  नूह पाँच सौ वर्ष का हुआ; नूह ने शेम, हाम येपेत को जन्म दिया।
139  GEN 6:1  फिर जब मनुष्य भूमि के ऊपर बहुत बढ़ने लगे, उनके बेटियाँ उत्‍पन्‍न हुईं,
140  GEN 6:2  तब परमेश्‍वर के पुत्रों ने मनुष्य की पुत्रियों को देखा, कि वे सुन्दर हैं; उन्होंने जिस-जिस को चाहा उनसे ब्याह कर लिया।
142  GEN 6:4  उन दिनों में पृथ्वी पर दानव रहते थे; इसके पश्चात् जब परमेश्‍वर के पुत्र मनुष्य की पुत्रियों के पास गए तब उनके द्वारा जो सन्तान उत्‍पन्‍न हुए, वे पुत्र शूरवीर होते थे, जिनकी कीर्ति प्राचीनकाल से प्रचलित है।
143  GEN 6:5  यहोवा ने देखा कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, उनके मन के विचार में जो कुछ उत्‍पन्‍न होता है वह निरन्तर बुरा ही होता है। (भज. 53:2)
144  GEN 6:6  यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, वह मन में अति खेदित हुआ।
147  GEN 6:9  नूह की वंशावली यह है। नूह* धर्मी पुरुष अपने समय के लोगों में खरा था; नूह परमेश्‍वर ही के साथ-साथ चलता रहा।
148  GEN 6:10  नूह से शेम, हाम, येपेत नामक, तीन पुत्र उत्‍पन्‍न हुए।
149  GEN 6:11  उस समय पृथ्वी परमेश्‍वर की दृष्टि में बिगड़ गई* थी, उपद्रव से भर गई थी।