Wildebeest analysis examples for:   hin-hin2017   ब    February 11, 2023 at 18:44    Script wb_pprint_html.py   by Ulf Hermjakob

1  GEN 1:1  आदि में परमेश्‍वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की। (इ्रा. 1:10,्रा. 11:3)
2  GEN 1:2  पृथ्वी ेडौल और सुनसान पड़ी थी, और गहरे जल के ऊपर अंधियारा था; तथा परमेश्‍वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डराता था। (2 कुरि. 4:6)
3  GEN 1:3  परमेश्‍वर ने कहा, “उजियाला हो*,” तो उजियाला हो गया।
6  GEN 1:6  फिर परमेश्‍वर ने कहा*, “जल के ीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए।”
7  GEN 1:7  परमेश्‍वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अलग-अलग किया; और वैसा ही हो गया।
11  GEN 1:11  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पृथ्वी से हरी घास, तथा ीजवाले छोटे-छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके ीज उन्हीं में एक-एक की जाति के अनुसार होते हैं पृथ्वी पर उगें,” और वैसा ही हो गया। (1 कुरि. 15:38)
12  GEN 1:12  इस प्रकार पृथ्वी से हरी घास, और छोटे-छोटे पेड़ जिनमें अपनी-अपनी जाति के अनुसार ीज होता है, और फलदाई वृक्ष जिनके ीज एक-एक की जाति के अनुसार उन्हीं में होते हैं उगें; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
16  GEN 1:16  परमेश्‍वर ने दो ड़ी ज्योतियाँ नाईं; उनमें से ड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये नाया; और तारागण को भी नाया।
20  GEN 1:20  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “जल जीवित प्राणियों से हुत ही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें।”
21  GEN 1:21  इसलिए परमेश्‍वर ने जाति-जाति के ड़े-ड़े जल-जन्तुओं की, और उन जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते-फिरते हैं जिनसे जल हुत ही भर गया और एक-एक जाति के उड़नेवाले पक्षियों की भी सृष्टि की; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
22  GEN 1:22  परमेश्‍वर ने यह कहकर उनको आशीष दी*, “फूलो-फलो, और समुद्र के जल में भर जाओ, और पक्षी पृथ्वी पर ढ़ें।”
25  GEN 1:25  इस प्रकार परमेश्‍वर ने पृथ्वी के जाति-जाति के वन-पशुओं को, और जाति-जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति-जाति के भूमि पर रेंगनेवाले जन्तुओं को नाया; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
26  GEN 1:26  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “हम मनुष्य* को अपने स्वरूप के अनुसार* अपनी समानता में नाएँ; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और रेंगनेवाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें।” (याकू. 3:9)
27  GEN 1:27  परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्‍पन्‍न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्‍वर ने उसको उत्‍पन्‍न किया; नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की। (मत्ती 19:4, मर. 10:6, प्रेरि. 17:29, 1 कुरि. 11:7, कुलु. 3:10,1, तीमु. 2:13)
28  GEN 1:28  और परमेश्‍वर ने उनको आशीष दी; और उनसे कहा, “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुंद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले जन्तुओं पर अधिकार रखो।”
29  GEN 1:29  फिर परमेश्‍वर ने उनसे कहा, “सुनो, जितने ीजवाले छोटे-छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं और जितने वृक्षों में ीजवाले फल होते हैं, वे मैंने तुमको दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिये हैं; (रोम. 14:2)
30  GEN 1:30  और जितने पृथ्वी के पशु, और आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले जन्तु हैं, जिनमें जीवन का प्राण हैं, उनके खाने के लिये मैंने हरे-हरे छोटे पेड़ दिए हैं,” और वैसा ही हो गया।
31  GEN 1:31  परमेश्‍वर ने जो कुछ नाया था,को देखा, तो क्या देखा, कि वह हुत ही अच्छा है। तथा सांझ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवाँ दिन हो गया। (1 तीमु. 4:4)
32  GEN 2:1  इस तरह आकाश और पृथ्वी और उनकी सारी सेना का नाना समाप्त हो गया।
33  GEN 2:2  और परमेश्‍वर ने अपना काम जिसे वह करता था सातवें दिन समाप्त किया, और उसने अपने किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्राम किया।* (इ्रा. 4:4)
35  GEN 2:4  आकाश और पृथ्वी की उत्पत्ति का वृत्तान्त यह है कि वे उत्‍पन्‍न हुए अर्थात् जिस दिन यहोवा परमेश्‍वर ने पृथ्वी और आकाश को नाया।
36  GEN 2:5  मैदान का कोई पौधा भूमि पर न था, और न मैदान का कोई छोटा पेड़ उगा था, क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर ने पृथ्वी पर जल नहीं रसाया था, और भूमि पर खेती करने के लिये मनुष्य भी नहीं था।
38  GEN 2:7  यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा, और उसके नथनों में जीवन का श्‍वास फूँक दिया; और आदम जीवित प्राणी गया। (1 कुरि. 15:45)
40  GEN 2:9  और यहोवा परमेश्‍वर ने भूमि से भाँति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं, उगाए, और वाटिका के ीच में जीवन के वृक्ष को और भले या ुरे के ज्ञान के वृक्ष को भी लगाया। (प्रका. 2:7, प्रका. 22:14)
41  GEN 2:10  उस वाटिका को सींचने के लिये एक महानदी अदन से निकली और वहाँ से आगे हकर चार नदियों में ँट गई। (प्रका. 22:2)
45  GEN 2:14  और तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल है; यह वही है जो अश्शूर के पूर्व की ओर हती है। और चौथी नदी का नाम फरात है।
46  GEN 2:15  यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को लेकर* अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उसमें काम करे और उसकी रखवाली करे।
48  GEN 2:17  पर भले या ुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।”
49  GEN 2:18  फिर यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं*; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक नाऊँगा जो उसके लिये उपयुक्‍त होगा।” (1 कुरि. 11:9)
50  GEN 2:19  और यहोवा परमेश्‍वर भूमि में से जाति के जंगली पशुओं, और आकाश के भाँति के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या-क्या नाम रखता है; और जिस-जिस जीवित प्राणी का जो-जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया।
51  GEN 2:20  अतः आदम ने जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पक्षियों, और जाति के जंगली पशुओं के नाम रखे; परन्तु आदम के लिये कोई ऐसा सहायक न मिला जो उससे मेल खा सके।
52  GEN 2:21  यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को गहरी नींद में डाल दिया, और वह सो गया उसने उसकी एक पसली निकालकर उसकी जगह माँस भर दिया। (1 कुरि. 11:8)
53  GEN 2:22  और यहोवा परमेश्‍वर ने उस पसली को जो उसने आदम में से निकाली थी, स्त्री ना दिया; और उसको आदम के पास ले आया। (1 तीमु. 2:13)
54  GEN 2:23  आदम ने कहा, “अ यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे माँस में का माँस है; इसलिए इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है।”
55  GEN 2:24  इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्‍नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन ने रहेंगे। (मत्ती 19:5, मर. 10:7,8, इफि. 5:31)
57  GEN 3:1  यहोवा परमेश्‍वर ने जितने जंगली पशु नाए थे, उन में सर्प धूर्त था, और उसने स्त्री से कहा, “क्या सच है, कि परमेश्‍वर ने कहा, 'तुम इस वाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना'?” (प्रका. 12:9, प्रका. 20:2)
59  GEN 3:3  पर जो वृक्ष वाटिका के ीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्‍वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न ही उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे।”
60  GEN 3:4  सर्प ने स्त्री से कहा, “तुम निश्चय न मरोगे
61  GEN 3:5  वरन् परमेश्‍वर आप जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, और तुम भले ुरे का ज्ञान पाकर परमेश्‍वर के तुल्य हो जाओगे।”
62  GEN 3:6  अतः स्त्री ने देखा* कि उस वृक्ष का फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और ुद्धि देने के लिये चाहने योग्य भी है, उसने उसमें से तोड़कर खाया; और अपने पति को भी दिया, जो उसके साथ था और उसने भी खाया। (1 तीमु. 2:14)
63  GEN 3:7  उन दोनों की आँखें खुल गईं, और उनको मालूम हुआ कि वे नंगे हैं; इसलिए उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़-जोड़कर लंगोट ना लिये।
64  GEN 3:8  यहोवा परमेश्‍वर, जो दिन के ठंडे समय वाटिका में फिरता था, उसका्द उनको सुनाई दिया। आदम और उसकी पत्‍नी वाटिका के वृक्षों के ीच यहोवा परमेश्‍वर से छिप गए।
65  GEN 3:9  यहोवा परमेश्‍वर ने पुकारकर आदम से पूछा, “तू कहाँ है?”
66  GEN 3:10  उसने कहा, “मैं तेरा्द वाटिका में सुनकर डर गया, क्योंकि मैं नंगा था;* इसलिए छिप गया।”
67  GEN 3:11  यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, “किसने तुझे ताया कि तू नंगा है? जिस वृक्ष का फल खाने को मैंने तुझे मना किया था, क्या तूने उसका फल खाया है?”
69  GEN 3:13  यहोवा परमेश्‍वर ने स्त्री से कहा, “तूने यह क्या किया है?” स्त्री ने कहा, “सर्प ने मुझे हका दिया, मैंने खाया।” (रोम. 7:11, 2 कुरि. 11:3, 1 तीमु. 2:14)
70  GEN 3:14  यहोवा परमेश्‍वर ने सर्प से कहा, “तूने जो यह किया है इसलिए तू घरेलू पशुओं, और जंगली पशुओं से अधिक श्रापित है; तू पेट के चला करेगा, और जीवन भर मिट्टी चाटता रहेगा;
71  GEN 3:15  और मैं तेरे और इस स्त्री के ीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के ीच में ैर उत्‍पन्‍न करूँगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।”
72  GEN 3:16  फिर स्त्री से उसने कहा, “मैं तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दुःख को हुत ढ़ाऊँगा; तू पीड़ित होकर च्चे उत्‍पन्‍न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।” (1 कुरि. 11:3, इफि. 5:22, कुलु. 3:18)
73  GEN 3:17  और आदम से उसने कहा, “तूने जो अपनी पत्‍नी की ात सुनी, और जिस वृक्ष के फल के विषय मैंने तुझे आज्ञा दी थी कि तू उसे न खाना, उसको तूने खाया है, इसलिए भूमि तेरे कारण श्रापित है। तू उसकी उपज जीवन भर दुःख के साथ खाया करेगा; (इ्रा. 6:8)
76  GEN 3:20  आदम ने अपनी पत्‍नी का नाम हव्वा रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवित हैं उन की मूलमाता वही हुई।
77  GEN 3:21  और यहोवा परमेश्‍वर ने आदम और उसकी पत्‍नी के लिये चमड़े के वस्‍त्र नाकर उनको पहना दिए।
78  GEN 3:22  फिर यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, “मनुष्य भले ुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है: इसलिए ऐसा न हो, कि वह हाथ ढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ कर खा ले और सदा जीवित रहे।” (प्रका. 2:7, प्रका. 22:2,14, 19, उत्प. 3:24, प्रका. 2:7)
79  GEN 3:23  इसलिए यहोवा परमेश्‍वर ने उसको अदन की वाटिका में से निकाल दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिसमें से वह नाया गया था।
80  GEN 3:24  इसलिए आदम को उसने निकाल दिया* और जीवन के वृक्ष के मार्ग का पहरा देने के लिये अदन की वाटिका के पूर्व की ओर करूों को, और चारों ओर घूमनेवाली अग्निमय तलवार को भी नियुक्त कर दिया।
81  GEN 4:1  आदम अपनी पत्‍नी हव्वा के पास गया उसने गर्भवती होकर कैन को जन्म दिया और कहा, “मैंने यहोवा की सहायता से एक पुत्र को जन्म दिया है।”
82  GEN 4:2  फिर वह उसके भाई हािल को भी जन्मी, हािल तो भेड़-करियों का चरवाहा गया, परन्तु कैन भूमि की खेती करनेवाला किसान ना।
84  GEN 4:4  और हािल भी अपनी भेड़-करियों के कई एक पहलौठे च्चे भेंट चढ़ाने ले आया और उनकी चर्भेंट चढ़ाई;* यहोवा ने हािल और उसकी भेंट को तो ग्रहण किया, (इ्रा. 11:4)