Wildebeest analysis examples for:   hin-hin2017   ु    February 11, 2023 at 18:44    Script wb_pprint_html.py   by Ulf Hermjakob

2  GEN 1:2  पृथ्वी बेडौल औरनसान पड़ी थी, और गहरे जल के ऊपर अंधियारा था; तथा परमेश्‍वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डराता था। (2रि. 4:6)
5  GEN 1:5  और परमेश्‍वर ने उजियाले को दिन और अंधियारे को रात कहा। तथा सांझफिर भोरआ। इस प्रकार पहला दिन हो गया।
8  GEN 1:8  और परमेश्‍वर ने उस अन्तर को आकाश कहा। तथा सांझफिर भोरआ। इस प्रकार दूसरा दिन हो गया।
10  GEN 1:10  और परमेश्‍वर ने सूखी भूमि को पृथ्वी कहा, तथा जो जल इकट्ठाउसको उसने समद्र कहा; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
11  GEN 1:11  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पृथ्वी से हरी घास, तथा बीजवाले छोटे-छोटे पेड़, और फलदाई वृक्ष भी जिनके बीज उन्हीं में एक-एक की जाति के अनसार होते हैं पृथ्वी पर उगें,” और वैसा ही हो गया। (1रि. 15:38)
12  GEN 1:12  इस प्रकार पृथ्वी से हरी घास, और छोटे-छोटे पेड़ जिनमें अपनी-अपनी जाति के अनसार बीज होता है, और फलदाई वृक्ष जिनके बीज एक-एक की जाति के अनसार उन्हीं में होते हैं उगें; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
13  GEN 1:13  तथा सांझफिर भोरआ। इस प्रकार तीसरा दिन हो गया।
16  GEN 1:16  तब परमेश्‍वर ने दो बड़ी ज्योतियाँ बनाईं; उनमें से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभता करने के लिये, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभता करने के लिये बनाया; और तारागण को भी बनाया।
18  GEN 1:18  तथा दिन और रात पर प्रभता करें और उजियाले को अंधियारे से अलग करें; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
19  GEN 1:19  तथा सांझफिर भोरआ। इस प्रकार चौथा दिन हो गया।
20  GEN 1:20  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “जल जीवित प्राणियों से बहही भर जाए, और पक्षी पृथ्वी के ऊपर आकाश के अन्तर में उड़ें।”
21  GEN 1:21  इसलिए परमेश्‍वर ने जाति-जाति के बड़े-बड़े जल-जन्तओं की, और उन सब जीवित प्राणियों की भी सृष्टि की जो चलते-फिरते हैं जिनसे जल बहही भर गया और एक-एक जाति के उड़नेवाले पक्षियों की भी सृष्टि की; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
22  GEN 1:22  परमेश्‍वर ने यह कहकर उनको आशीष दी*, “फूलो-फलो, और समद्र के जल में भर जाओ, और पक्षी पृथ्वी पर बढ़ें।”
23  GEN 1:23  तथा सांझफिर भोरआ। इस प्रकार पाँचवाँ दिन हो गया।
24  GEN 1:24  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “पृथ्वी से एक-एक जाति के जीवित प्राणी, अर्थात् घरेलू पश, और रेंगनेवाले जन्त, और पृथ्वी के वन पश, जाति-जाति के अनसार उत्‍पन्‍न हों,” और वैसा ही हो गया।
25  GEN 1:25  इस प्रकार परमेश्‍वर ने पृथ्वी के जाति-जाति के वन-पशओं को, और जाति-जाति के घरेलू पशओं को, और जाति-जाति के भूमि पर सब रेंगनेवाले जन्तओं को बनाया; और परमेश्‍वर ने देखा कि अच्छा है।
26  GEN 1:26  फिर परमेश्‍वर ने कहा, “हम मनष्य* को अपने स्वरूप के अनसार* अपनी समानता में बनाएँ; और वे समद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगनेवाले जन्तओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें।” (याकू. 3:9)
27  GEN 1:27  तब परमेश्‍वर ने मनष्य को अपने स्वरूप के अनसार उत्‍पन्‍न किया, अपने ही स्वरूप के अनसार परमेश्‍वर ने उसको उत्‍पन्‍न किया; नर और नारी करके उसने मनष्यों की सृष्टि की। (मत्ती 19:4, मर. 10:6, प्रेरि. 17:29, 1रि. 11:7,. 3:10,1, तीम. 2:13)
28  GEN 1:28  और परमेश्‍वर ने उनको आशीष दी; और उनसे कहा, “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समंद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तओं पर अधिकार रखो।”
29  GEN 1:29  फिर परमेश्‍वर ने उनसे कहा, “सनो, जितने बीजवाले छोटे-छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं और जितने वृक्षों में बीजवाले फल होते हैं, वे सब मैंनेमको दिए हैं; वेम्हारे भोजन के लिये हैं; (रोम. 14:2)
30  GEN 1:30  और जितने पृथ्वी के पश, और आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले जन्त हैं, जिनमें जीवन का प्राण हैं, उन सबके खाने के लिये मैंने सब हरे-हरे छोटे पेड़ दिए हैं,” और वैसा ही हो गया।
31  GEN 1:31  तब परमेश्‍वर ने जोबनाया था, सबको देखा, तो क्या देखा, कि वह बहही अच्छा है। तथा सांझफिर भोरआ। इस प्रकार छठवाँ दिन हो गया। (1 तीम. 4:4)
33  GEN 2:2  और परमेश्‍वर ने अपना काम जिसे वह करता था सातवें दिन समाप्त किया, और उसने अपने किएसारे काम से सातवें दिन विश्राम किया।* (इब्रा. 4:4)
35  GEN 2:4  आकाश और पृथ्वी की उत्पत्ति का वृत्तान्त यह है कि जब वे उत्‍पन्‍नअर्थात् जिस दिन यहोवा परमेश्‍वर ने पृथ्वी और आकाश को बनाया।
36  GEN 2:5  तब मैदान का कोई पौधा भूमि पर न था, और न मैदान का कोई छोटा पेड़ उगा था, क्योंकि यहोवा परमेश्‍वर ने पृथ्वी पर जल नहीं बरसाया था, और भूमि पर खेती करने के लिये मनष्य भी नहीं था।
37  GEN 2:6  लेकिनहरा पृथ्वी से उठता था जिससे सारी भूमि सिंच जाती थी।
38  GEN 2:7  तब यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा, और उसके नथनों में जीवन का श्‍वास फूँक दिया; और आदम जीवित प्राणी बन गया। (1रि. 15:45)
40  GEN 2:9  और यहोवा परमेश्‍वर ने भूमि से सब भाँति के वृक्ष, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं, उगाए, और वाटिका के बीच में जीवन के वृक्ष को और भले यारे के ज्ञान के वृक्ष को भी लगाया। (प्रका. 2:7, प्रका. 22:14)
42  GEN 2:11  पहली नदी का नाम पीशोन है, यह वही है जो हवीला नाम के सारे देश को जहाँ सोना मिलता है घेरेहै।
43  GEN 2:12  उस देश का सोना उत्तम होता है; वहाँ मोती औरलैमानी पत्थर भी मिलते हैं।
44  GEN 2:13  और दूसरी नदी का नाम गीहोन है; यह वही है जो कूश के सारे देश को घेरेहै।
48  GEN 2:17  पर भले यारे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।”
49  GEN 2:18  फिर यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, “आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं*; मैं उसके लिये एक ऐसा सहायक बनाऊँगा जो उसके लिये उपयक्‍त होगा।” (1रि. 11:9)
50  GEN 2:19  और यहोवा परमेश्‍वर भूमि में से सब जाति के जंगली पशओं, और आकाश के सब भाँति के पक्षियों को रचकर आदम के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या-क्या नाम रखता है; और जिस-जिस जीवित प्राणी का जो-जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया।
51  GEN 2:20  अतः आदम ने सब जाति के घरेलू पशओं, और आकाश के पक्षियों, और सब जाति के जंगली पशओं के नाम रखे; परन्त आदम के लिये कोई ऐसा सहायक न मिला जो उससे मेल खा सके।
52  GEN 2:21  तब यहोवा परमेश्‍वर ने आदम को गहरी नींद में डाल दिया, और जब वह सो गया तब उसने उसकी एक पसली निकालकर उसकी जगह माँस भर दिया। (1रि. 11:8)
53  GEN 2:22  और यहोवा परमेश्‍वर ने उस पसली को जो उसने आदम में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; और उसको आदम के पास ले आया। (1 तीम. 2:13)
55  GEN 2:24  इस कारणअपने माता-पिता को छोड़कर अपनी पत्‍नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे। (मत्ती 19:5, मर. 10:7,8, इफि. 5:31)
57  GEN 3:1  यहोवा परमेश्‍वर ने जितने जंगली पश बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त था, और उसने स्त्री से कहा, “क्या सच है, कि परमेश्‍वर ने कहा, 'तइस वाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना'?” (प्रका. 12:9, प्रका. 20:2)
59  GEN 3:3  पर जो वृक्ष वाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्‍वर ने कहा है कि न तोउसको खाना और न ही उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे।”
60  GEN 3:4  तब सर्प ने स्त्री से कहा, “तनिश्चय न मरोगे
61  GEN 3:5  वरन् परमेश्‍वर आप जानता है कि जिस दिनउसका फल खाओगे उसी दिनम्हारी आँखेंजाएँगी, औरभलेरे का ज्ञान पाकर परमेश्‍वर केल्य हो जाओगे।”
62  GEN 3:6  अतः जब स्त्री ने देखा* कि उस वृक्ष का फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ, औरद्धि देने के लिये चाहने योग्य भी है, तब उसने उसमें से तोड़कर खाया; और अपने पति को भी दिया, जो उसके साथ था और उसने भी खाया। (1 तीम. 2:14)
63  GEN 3:7  तब उन दोनों की आँखेंगईं, और उनको मालूमकि वे नंगे हैं; इसलिए उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़-जोड़कर लंगोट बना लिये।
64  GEN 3:8  तब यहोवा परमेश्‍वर, जो दिन के ठंडे समय वाटिका में फिरता था, उसका शब्द उनकोनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्‍नी वाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्‍वर से छिप गए।
65  GEN 3:9  तब यहोवा परमेश्‍वर नेकारकर आदम से पूछा, “तू कहाँ है?”
66  GEN 3:10  उसने कहा, “मैं तेरा शब्द वाटिका मेंनकर डर गया, क्योंकि मैं नंगा था;* इसलिए छिप गया।”
67  GEN 3:11  यहोवा परमेश्‍वर ने कहा, “किसनेझे बताया कि तू नंगा है? जिस वृक्ष का फल खाने को मैंनेझे मना किया था, क्या तूने उसका फल खाया है?”
68  GEN 3:12  आदम ने कहा, “जिस स्त्री को तूने मेरे संग रहने को दिया है उसी ने उस वृक्ष का फलझे दिया, और मैंने खाया।”
69  GEN 3:13  तब यहोवा परमेश्‍वर ने स्त्री से कहा, “तूने यह क्या किया है?” स्त्री ने कहा, “सर्प नेझे बहका दिया, तब मैंने खाया।” (रोम. 7:11, 2रि. 11:3, 1 तीम. 2:14)
70  GEN 3:14  तब यहोवा परमेश्‍वर ने सर्प से कहा, “तूने जो यह किया है इसलिए तू सब घरेलू पशओं, और सब जंगली पशओं से अधिक श्रापित है; तू पेट के बल चला करेगा, और जीवन भर मिट्टी चाटता रहेगा;
71  GEN 3:15  और मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्‍पन्‍न करूँगा, वह तेरे सिर कोचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।”
72  GEN 3:16  फिर स्त्री से उसने कहा, “मैं तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने केःख को बहबढ़ाऊँगा; तू पीड़ित होकर बच्चे उत्‍पन्‍न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वहपर प्रभता करेगा।” (1रि. 11:3, इफि. 5:22,. 3:18)
73  GEN 3:17  और आदम से उसने कहा, “तूने जो अपनी पत्‍नी की बातनी, और जिस वृक्ष के फल के विषय मैंनेझे आज्ञा दी थी कि तू उसे न खाना, उसको तूने खाया है, इसलिए भूमि तेरे कारण श्रापित है। तू उसकी उपज जीवन भरःख के साथ खाया करेगा; (इब्रा. 6:8)